काशी शब्दोत्सव - 202516, 17 एवं 18 नवम्बर, 2025

विश्व कल्याण: भारतीय संस्कृतिकला, संस्कृति एवं साहित्य का अन्तरराष्ट्रीय महोत्सवविश्व संवाद केन्द्र, काशी द्वारा आयोजित

शब्दोत्सव की विशेषताएं

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18 सत्र

तीन दिनों में विविध विषयों पर विशेषज्ञों द्वारा मंथन

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अन्तरराष्ट्रीय सहभागिता

देश-विदेश के विद्वानों की उपस्थिति

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ज्ञान संगम

आध्यात्मिक व सांस्कृतिक राजधानी में ज्ञान का मिलन

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वैश्विक परिप्रेक्ष्य

भारत की G-20 अध्यक्षता के संदर्भ में विशेष सत्र

शब्दोत्सव की परिकल्पना

काशी शब्दोत्सव की परिकल्पना इस तरह से की गई है कि इसमें काशी के ज्ञान के अजस्र स्रोत में भारत, भारतीयता और भारतीय ज्ञान परंपरा की जो अजस्र धारा प्रवाहित हो रही है उसको गंगा की तरह उद्गममुखी किया जा सके। तीन दिनों तक विभिन्न विषयों पर विशेषज्ञों के द्वारा मंथन प्रस्तावित है जिसमें पुरातनता और आधुनिकता का समन्वय होगा।

ज्ञान-विज्ञान, समाज-संस्कृति, परंपरा-आधुनिकता के अन्तर्सम्बन्ध पर चर्चा होगी। तीन दिनों तक 18 सत्रों में काशी शब्दोत्सव की इस परिकल्पना में देश-विदेश के विद्वान उपस्थित रहेंगे।

शब्दोत्सव के तीन स्तंभ

काशी

क्या यह एक भूमि का टुकड़ा मात्र है या ज्ञान की वह पुंज भूमि है जिसको भारत की आध्यात्मिक व सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। काशी के बारे में कहा जाता है कि जब पूरी दुनिया में प्रलय आ जाएगा तो भी काशी बची रहेगी क्योंकि यह भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई है।

शब्द

शब्द वह माध्यम है जिसके जरिए ज्ञान की व्याप्ति होती है। शब्द ब्रह्म है, की परिकल्पना भी भारतीय दर्शन में की गयी है। इसका वैज्ञानिक संदर्भ भी है। कहा जाता है कि जो भी बोला जाता है वह वायुमंडल में सतत् रूप में विद्यमान रहता है जो कभी समाप्त नहीं होता है।

उत्सव

उत्सव वह है जो हमें अपने ''उत्स'' अर्थात् मूल से जोड़ता है। भारत एक उत्सवधर्मी देश है और काशी की परंपरा में उसके विविध रंग अभिव्यक्त होते हैं। यहाँ के जीवन दर्शन में उत्सव का विशेष महत्व है।

काशी की महानता

काशी की एक अन्य विशेषता है कि यहां आकर माँ गंगा उत्तरवाहिनी हो जाती हैं। किसी भी नदी या नद की धारा उस ओर नहीं होती है जिस दिशा से उसका उद्गम होता है, किन्तु काशी इसकी अपवाद है। काशी वह पूण्य भूमि है जहां मृत्यु से मोक्ष की बात की गयी है।

महात्मा बुद्ध भी इस नगरी में आकर उपदेश और आदि शंकराचार्य ज्ञान की प्राप्ति करते हैं। स्पष्ट है उन्हें इस धरती में अवश्य ही कोई विशेषता दिखी होगी। यह भी अनायास नहीं है कि काशी की धरती पर कबीर, रविदास, तुलसी से लेकर भारतेन्दु, जयशंकर प्रसाद और प्रेमचंद जैसे विलक्षण लेखक/विचारक होते आये हैं।

काशी की परंपरा और संस्कृति
यत्र विश्वे सुरा यान्तिसा काशी परमा गतिः

2025 का विषय

विश्व कल्याण: भारतीय संस्कृति

विश्व में बढ़ती हिंसा, अराजकता एवं बाजारवाद से मानवीय मूल्यों का अवमूल्यन हुआ है। पश्चिम की उपभोक्तावादी एवं अर्थ प्रधान दृष्टिकोंण ने मानव समुदाय को प्रकृति के रक्षक के स्थान पर उसका भक्षक बना दिया है। इस कारण स्वार्थ पर परमार्थ, पशुता पर मानवता जैसे दृष्टिकोंण को विश्वपटल पर प्रभावी बनाने के लिए वर्तमान में ''विश्व कल्याण: भारतीय संस्कृति'' का विमर्श आवश्यक है।

प्रतिष्ठित वक्ता एवं विद्वान

देश-विदेश के प्रतिष्ठित विद्वान, लेखक एवं चिन्तक शब्दोत्सव में सहभागिता करेंगे

डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी

डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी

निर्देशक एवं लेखक

प्रो. बद्री नारायण

प्रो. बद्री नारायण

इतिहासकार एवं लेखक

मालिनी अवस्थी

मालिनी अवस्थी

लोक गायिका

मनोज मुन्तशिर

मनोज मुन्तशिर

गीतकार एवं कवि

प्रो. कपिल कपूर

प्रो. कपिल कपूर

भाषाविद् एवं दार्शनिक

आरिफ मोहम्मद खान

आरिफ मोहम्मद खान

राज्यपाल, केरल

सच्चिदानन्द जोशी

सच्चिदानन्द जोशी

सदस्य सचिव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र

प्रफुल्ल केतकर

प्रफुल्ल केतकर

सम्पादक, ऑर्गनाइज़र

राकेश सिन्हा

राकेश सिन्हा

राज्यसभा सदस्य

उषा किरण खान

उषा किरण खान

राज्यपाल, मणिपुर

नीरा मिश्रा

नीरा मिश्रा

लेखिका एवं चिन्तक

वामन केन्द्रे

वामन केन्द्रे

वरिष्ठ पत्रकार

सहयोग के विकल्प

एक सत्र का सहयोग

₹15 लाख

विशेष सत्र के लिए सहयोग (स्पॉन्सरशिप)